प्रार्थना के बाद भी भगवान नहीं सुन रहे?

प्रार्थना के बाद भी भगवान नहीं सुन रहे?

एक सेठ के घर के बाहर एक साधू महाराज खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे और बदले में खाने को रोटी मांग रहे थे। सेठानी काफी देर से उसको कह रही थी कि आ रही हूँ। रोटी हाथ में थी पर फिर भी कह रही थी कि रुको आ रही हूँ। साधू ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे और रोटी मांग रहे थे। सेठ ये सब देख रहा था पर समझ नहीं पा रहा था, आखिर सेठानी से बोला- रोटी हाथ में लेकर खड़ी हो, वो बाहर मांग रहे हैं, उन्हें कह रही हो आ रही हूँ तो उन्हें रोटी क्यों नहीं दे रही हो? सेठानी बोली- हाँ रोटी दूँगी, पर क्या है ना कि मुझे उनकी प्रार्थना बहुत अच्छी लग रही है, अगर उनको रोटी दे दूँगी तो वो आगे चले जायेंगे। मुझे उसकी प्रार्थना और सुननी है। यदि प्रार्थना के बाद भी भगवान आपकी नहीं सुन रहे हैं तो समझना कि उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही है, इसलिए इंतजार करो और प्रार्थना करते रहो। जीवन में कैसा भी दुःख और कष्ट आए पर प्रार्थना मत छोड़िए। क्या कष्ट आता है तो आप भोजन करना छोड़ देते हैं? क्या बीमारी आती है तो आप सांस लेना छोड़ देते हैं? नहीं ना? फिर जरा सी तकलीफ आने पर आप प्रार्थना करना क्यों छोड़ देते हो? कभी भी दो चीजें मत छोड़यैि। भोजन छोड़ दोगे तो जिंदा नहीं रहोगे और प्रार्थना छोड़ दोगे तो कहीं के नहीं रहोगे। सही मायने में जिंदगी में प्रार्थना और भोजन दोनों ही आवश्यक हैं।

हृदय का करें अनुसरण

कोई भी धर्मग्रंथ हमें धार्मिक नहीं बना सकता। चाहे हम दुनिया के सारे धर्मग्रंथ पढ़ डालें, परंतु फिर भी ईश्वर या धर्म का हमें तनिक भी ज्ञान नहीं होता। हम सारी उम्र धर्म या ईश्वर संबंधी बातें करते रहें, पर हमारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती। दुनिया के विद्वानों ने भले ही हमारी बुद्धि प्रखर कर दी हो, पर हम ईश्वर तक नहीं पहुंच सके। पाश्चात्य संस्कृति का दोष यह है कि हम बुद्धि का संस्कार करते समय हृदय के संस्कार की ओर ध्यान ही नहीं देते। इसका परिणाम यह होता है कि मनुष्य दस गुना स्वार्थी हो जाता है। यदि हृदय और बुद्धि में विरोध उत्पन्न हो, तो तुम हृदय का अनुसरण करो, क्योंकि बुद्धि केवल एक तर्क के क्षेत्र में ही काम कर सकती है, वह उसके परे जा ही नहीं सकती, पर वह केवल हृदय ही है, जो हमें उच्चतम भूमिका पर आरूढ़ करता है। वहां तक बुद्धि कभी नहीं पहुंच सकती। हृदय, बुद्धि का अतिक्रमण कर अंतःस्फूर्ति को पा लेती है। बुद्धि से कभी अंतःस्फूर्ति प्राप्त नहीं हो सकती। अंतःस्फूर्ति का कारण केवल ज्ञानोदय बासित हृदय ही है। बुद्धिप्रधान, किंतु हृदय शून्य मनुष्य कभी स्फूर्तिमान नहीं बन सकता। प्रेममय पुरुष की समस्त क्रियाएं उसके हृदय से अनुप्राणित होती हैं। एक ऐसा उच्चतर साधन, जिसे बुद्धि कभी नहीं दे सकती, अगर किसी ने पाया है तो हृदय ने ही, और वह साधन है अंतःस्फूर्ति। जिस तरह बुद्धि ज्ञान का साधन है, उसी तरह हृदय अंतःस्फूर्ति का। शुरुआत में हृदय इतना शक्तिशाली नहीं होता, जितनी कि बुद्धि। एक अनपढ़ मनुष्य को कोई ज्ञान नहीं होता, पर वह थोड़ा बहुत भावना प्रधान होता है।

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